सन 1857 के बाद सम्पुर्ण भारत में आंदोलन की शुरुआत हो गई तब किसान और मजदुर भी अपनी आवाज बुलंद करने आगे आए। किसानो और मजदुरो पर हो रहे अत्याचार और शोषण का गांधी जी ने भी विरोध किया। फलस्वरुप कई आंदोलन हुए जैसे – नील विद्रोह, पाबना विद्रोह, तेभागा आन्दोलन, चम्पारन सत्याग्रह, बारदोली सत्याग्रह और मोपला विद्रोह प्रमुख किसान आन्दोलन के रूप में जाने जाते हैं।
प्रमुख किसान आन्दोलन –
1. नील आंदोलन/विद्रोह – 1859 से 1860 – यह आन्दोलन भारतीयों किसानों द्वारा ब्रिटिश नील उत्पादकों के ख़िलाफ़ बंगाल में किया गया। अंग्रेज़ अधिकारी बंगाल तथा बिहार के ज़मींदारों से भूमि लेकर बिना पैसा दिये ही किसानों को नील की खेती में काम करने के लिए विवश करते थे, तथा नील उत्पादक किसानों को एक मामूली सी रक़म अग्रिम देकर उनसे करारनामा लिखा लेते थे, जो बाज़ार भाव से बहुत कम दाम पर हुआ करता था।
2. पाबना विद्रोह – 1873 से 1876 – पाबना ज़िले के काश्तकारों को 1859 ई. में एक एक्ट द्वारा बेदख़ली एवं लगान में वृद्धि के विरुद्ध एक सीमा तक संरक्षण प्राप्त हुआ था, इसके बाबजूद भी ज़मींदारों ने उनसे सीमा से अधिक लगान वसूला एवं उनको उनकी ज़मीन के अधिकार से वंचित किया। इस एक्ट के विरोध में यह आंदोलन हुआ।
3. दक्कन विद्रोह – 1874 – गुजराती और मारवाडी साहुकार महाराष्ट्र के पुना और अहमदनगर जिलों मे ढेर सारे हथकण्डे अपनाकर किसानों का शोषण कर रहे थे। इन साहुकारों के विरुध्द यह आंदोलन हुआ।
4. मोपला विद्रोह – 1920 – केरल के मालाबार क्षेत्र में मोपलाओं द्वारा 1920 ई. में विद्राह किया गया। महात्मा गाँधी, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे नेताओं का सहयोग इस आन्दोलन को प्राप्त था। 1920 ई. में इस आन्दोलन ने हिन्दू-मुसलमानों के मध्य साम्प्रदायिक आन्दोलन का रूप ले लिया, परन्तु शीघ्र ही इस आन्दोलन को कुचल दिया गया।
5. कूका विद्रोह – 1872 – कृषि सम्बन्धी समस्याओं के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ सरकार से लड़ने के लिए बनाये गये इस संगठन के संस्थापक भगत जवाहरमल थे।
6. अखिल भारतीय किसान सभा – 1936
7. चम्पारन सत्याग्रह – चम्पारन के किसानों से अंग्रेज़ बाग़ान मालिकों ने एक अनुबंध करा लिया था, जिसके अंतर्गत किसानों को ज़मीन के 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था। इसे ‘तिनकठिया पद्धति’ कहते थे। 19वीं शताब्दी के अन्त में रासायनिक रगों की खोज और उनके प्रचलन से नील के बाज़ार में गिरावट आने लगी, जिससे नील बाग़ान के मालिक अपने कारखाने बंद करने लगे। किसान भी नील की खेती से छुटकारा पाना चाहते थे।
8. खेड़ा सत्याग्रह – चम्पारन के बाद गाँधीजी ने 1918 ई. में खेड़ा किसानों की समस्याओं को लेकर आन्दोलन शुरू किया। खेड़ा गुजरात में स्थित है। 22 मार्च, 1918 ई. को नाडियाड में एक आम सभा में गाँधीजी ने किसानों का लगान अदा न करने का सुझाव दिया। गाँधीजी के सत्याग्रह के आगे विवश होकर सरकार ने यह आदेश दिया कि, वसूली समर्थ किसानों से ही की जाय।
9. बारदोली सत्याग्रह – 1920 – सूरत (गुजरात) के बारदोली तालुके में 1928 ई. में किसानों द्वारा ‘लगान’ न अदायगी का आन्दोलन चलाया गया। Source : B.D.
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