- अप्रैल 2016 को संयुक्त राष्ट्र सभा ने 2016-25 के दशक को पोषण में सक्रियता लाने के लिहाज से महत्वपूर्ण माना है।
- जुलाई 2016 में ही वित्तमंत्री सहित अन्य मंत्री, वरिष्ठ नौकरशाह एवं गैरसरकारी संस्थाओं के प्रतिनिधि राष्ट्रीय पोषण मिशन के प्रारूप पर मंथन में लग गए है।
राष्ट्रीय पोषण मिशन की जरूरत क्यों?
- दस वर्ष पहले जब राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़े सामने आए, तो पता लगा कि देश के लगभग आधे बच्चे कुपोषित हैं। हाँलाकि सर्वेक्षण के चैथे भाग में आँकड़े कुछ बेहतर दिखाई दिए, परंतु मंजिल काफी दूर थी।
- इस दौरान कुपोषण से जूझने के लिए सरकार के पास एक ही विकल्प था- बाल विकास एकीकृत योजना (Integrated Child Development Services Scheme – ICDS)। विश्व के इस सबसे बड़े सामाजिक कार्यक्रम ने पिछले 41 वर्ष में मातृत्व एवं बाल कुपोषण पर विजय नहीं पाई।
- यूपीए सरकार ने आईसीडीएस को सफल बनाने के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ाई। एनडीए सरकार ने कुपोषण से निपटने का भार राज्यों पर यह कहकर डाल दिया कि राज्य, चाहे जिस तरह की योजना बनाकर इससे निपटें।
- कुपोषण की उच्च दर बच्चों में मानसिक एवं शारीरिक विकलांगता के साथ-साथ उनकी उत्पादकता पर भी प्रभाव डालती है। किसी देश में कुपोषित बच्चों का अधिक होना उस देश की आर्थिक प्रगति पर भी प्रभाव डालता है। अनुमान है कि कुपोषण से एशिया के सकल घरेलू उत्पाद पर 11 प्रतिशत का प्रभाव पडे़गा।
- समस्त विश्व में यह माना गया है कि माँ के गर्भ में आने से लेकर शिशु के दो वर्ष के होने तक यानी 1000 दिन का होने तक, पर्याप्त पोषण न मिलने से अपरिवर्तनीय हानि हो सकती है।
- कुपोषित गर्भवती माँ एक कुपोषित बच्चे को जन्म देती है। भारत में ऐसे मातृत्व की संख्या अफ्रीका के सहारा प्रांत से भी अधिक है। यह बहुत ही गंभीर स्थिति है।
कुपोषण से निपटने के लिए समाधान
- आईसीडीएस में सुधार के साथ पोषण मिशन चलाए जाने की अत्यंत आवश्यकता है। ये केंद्र व राज्य स्तरों पर चलाए जाएं। यही सोचकर सरकार ने भारतीय पोषण मिशन की नींव डाली।
- सरकार इस मिशन को महाराष्ट्र, गुजरात आदि कई राज्यों में चलाने की इच्छुक है। राज्यों ने इसकी सहमति भी दे दी है। इस मिशन का उद्देश्य स्वास्थ्य, कृषि, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, जल एवं स्वच्छता आदि विभागों के बीच तालमेल बैठाकर कुपोषण को कम करना है।
- इस मिशन के द्वारा आई सी डी एस की कार्यप्रणाली पर नजर रखी जाएगी। इस तरह के नियंत्रण से आईसीडीएस के दिए गए आंकड़ें की सच्चाई को सुनिश्चित किया जा सकेगा। साथ ही आधुनिक तकनीकों एवं मोबाइल की मदद से प्रत्येक बच्चे के स्वास्थ्य पर नजर रखी जा सकेगी।
कुपोषण से निपटने के लिए
- आंगनवाड़ी को अधिक संक्रिय किया जाए। इसके कार्यकताओं को शिशुओं के 1000 दिन के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। वे गर्भवती महिलाओं एवं रक्त अल्पता से पीड़ित किशोरियों के परिवारों को परामर्श देने में सझम हों। उन्हें पिछड़े परिवारों को यह समझाना आना चाहिए कि कुपोषण का प्रभाव न केवल शरीर बल्कि मस्तिष्क के विकास पर भी पड़ता है।
- राष्ट्रीय मिशन के माध्यम से विश्वविद्यालयों एवं अनुसंधान केंद्रों में नए अनुसंधान किए जाएं।
- आंगनवाड़ी, आशा, एसएनएम, सीडीपीओ, सुपरवाइज़र एवं कार्पोरेट क्षेत्र के लोगों का सहयोग लेकर पोषण के क्षेत्र की कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
- भारत के लाखों बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए अब राष्ट्रीय पोषण मिशन की अत्यंत आवश्यकता है, जिससे भविष्य में कोई बच्चा डायरिया या निमोनिया से इसलिए न मरे कि उसे दो वर्ष तक की आयु तक उचित पोषण नहीं मिला।
‘द टाइम्स आॅफ इंडिया’ में नीरजा चैधरी के लेख पर आधारित।(afeias)
Current Content: राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission)
August 27, 2016 Labels: cgpsc
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