यह त्यौहार भाद्रपद (भादो) माह के अमावस्या के दिन मनाया जाता है। पोला मुख्यत किसानो से जुडा हुआ त्यौहार है । आषाढ माह से खेती किसानी करते आ रहे किसान जब भादो माह में अपनी खेती का सारा काम समाप्त कर लेते है जैसे धान बोना, निदाई करना, बियासी करना इत्यादि। तब किसान अपने खेती किसानी के मुख्य साथी बैल (नंदी) की विशेष रुप से पुजा अर्चना करते है।
गांवो में बच्चे सुबह से तैयार होकर गलियों में मिट्टी से बने नदियां बैल (नंदी बैल) जिसके चारो पैर में मिट्टी का पहिया लगा होता है उनसे खेलते है और लडकियां अपने घर में मिट्टी के छोटे छोटे बर्तन से चुकी दिया( छत्तीसगढी शब्द) खेलती है। जिसमे नाटकीय रुप से खाना पकाया एवं परोसा जाता है।
माना जाता है कि इस दिन खेतों के फसलों के बालियों में अन्न के दानों में दुध भरना शुरु होता है जो आगे पक कर धान (चावल) बनता है। इसिलिए इस दिन को अन्न का गर्भावस्था दिन भी कहा जाता है। पोला के दिन किसान खेत में कार्य करने नहीं जाते है। उस दिन घर में बैलों की पुजा करते है और उनका धन्यवाद भी करते है।
इस दिन बहुत से स्थानों पर बैल दौड एवं बैलगाडी दौड का भी आयोजन होता है।
पोला त्यौहार में घर घर मीठे पकवान बनाए जाते है जैसे – ठेठरी, खुरमी, बरा, गुझिया इत्यादि।
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