पंचायती राज-1992 का 73 वां संशोधन अधिनियम

September 21, 2016    

1992  का 73 वां संशोधन अधिनियम के तहत संविधान मे एक नया अध्याय – IX  को सम्मिलित किया गया। इसे ‘पंचायते’ नाम से उल्लिखित किया गया और अनुच्छेद 243 से 243 ’ण’ के प्रावधान को सम्मिलित किया गया।  इसमे पंचायतों की 29 कार्यकारी विषय वस्तु है।

इस अधिनियम ने संविधान के 40वें अनुच्छेद को एक व्यावहारिक रूप दिया गया, जिसमे कहा गया कि “ग्राम पंचायतों को गठित करने के लिए राजी कदम उठाएगा और उन्हें उन आवश्यक शक्तियों और अधिकारों से विभूषित करेगा जिससे कि वे स्वशासन की इकाई की तरह कारी करने में  सक्षम हो।  यह अनुच्छेद राज्य नीति के निदेशक सिध्दांतों का एक हिस्सा है।”

अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ –

ग्राम सभा – यह अधिनियम पंचायती राज के ग्राम सभा का प्रावधान करता है। इस निकाय में गांब स्तर पर गठित पंचायत क्षेत्र में निर्वाचक सूची में पंजीकृत व्यक्ति होते हैं। अत: यह पंचायत क्षेत्र में पंजीकृत मतदाताओं की एक ग्राम स्तरीय सभा है। यह उन शक्तियों का प्रयोग करेगी और ऐसे कारी निष्पादित कर सकती है जो राजी के विधानमंडल द्वारा निर्धारित किए गए है।

त्रिस्तरीय प्रणाली – इस अधिनियम में सभी राज्यों के लिए त्रिस्तरीय प्रणाली का प्रावधान किया गया है अर्थात ग्राम, माध्यमिक और जिला स्तर पर पंचायत। फिर भी ऐसा राज्य पर पंचायते को गठन न करने की छुट देता है।

सदस्यों एवं अध्यक्ष का चुनाव – गाँव, माध्यमिक तथा जिला स्तर पर पंचायतों के सभी सदस्य लोगो द्वारा सीधे चुने जाएंगे। इसके अलावा माध्यमिक एवं जिला स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव निर्वाचित सदस्यों द्वारा उन्ही में से अप्रत्यक्ष रूप से होगा, जबकि गाँव स्तर पर पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव राजी के विधानमंडल द्वारा निर्धारित तरीके से किया जाएगा।

सीटों का आरक्षण – यह अधिनियम प्रत्येक पंचायत में (सभी तीन स्तरों पर) अनुसूचित जाती एवं जनजाति को उनकी संख्या के कुल जनसंख्या के अनुपात में सीटों पर आरक्षण उपलब्ध कराता है।

पंचायतों का कार्यकाल – यह अधिनियम सभी स्तरों पर पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष के लिए निश्चित करता है। तथापि समय पूरा होने से पूर्व भी उसे विघटित किया जा सकता है।

राज्य निर्वाचन आयोग – चुनावी प्रकियाओ की तैयारी की देखरेख, निर्देशन, मतदाता सूची तैयार करने पर नियंत्रण और पंचायतों के सभी चुनावों को संपन्न कराने की शक्ति राज्य निर्वाचन आयोग में निहित होगी। इसमें राज्यपाल द्वारा नियुक्त राज्य चुनाव आयुक्त सम्मिलित है। उसकी सेवा शर्तें और पदावधि भी राज्यपाल द्वारा निर्धारित की जाएगी।

शक्तियाँ और कार्य – राजी विधानमण्डल पंचायतों को आवश्यकतानुसार ऐसी शक्तियाँ और अधिकार दे सकता है, जिससे कि वह स्वशासन संस्थाओं के रूप में कार्य करने में सक्षम हों। आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के रूप कार्यक्रमों को तैयार करना तथा आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय कार्यक्रमों को संचालित करना।

वित्त आयोग – राज्य का राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष के पश्चात पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा के लिए वित्त आयोग का गठन करेगा।

लेखा परीक्षण – राज्य विधान मण्डल पंचायतों के खातों की देखरेख और उनके परीक्षण के लिए प्रावधान बना सकता है।

छुट प्राप्त राज्य व क्षेत्र – यह कानून जम्मू-कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, मिजोरम और कुछ अन्य विशेष क्षेत्रों पर लागू नहीं होता।

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पंचायती राज-1992 का 73 वां संशोधन अधिनियम 4.5 5 Yateendra sahu September 21, 2016 1992  का 73 वां संशोधन अधिनियम के तहत संविधान मे एक नया अध्याय – IX  को सम्मिलित किया गया। इसे ‘पंचायते’ नाम से उल्लिखित किया गया और अनुच...


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