CGPSC-2016 – सुबा शासन   

August 13, 2016    

  1. प्रथम सुबेदार महीपत राव दिनकर ( 1788-1790 ई०)

  • महीपत राव दिनकर सुबेदार बनने से पुर्व छत्तीसगढ़ से परिचित था। वह एक मंजा हुआ कुटनीतिज्ञ था। नागपुर के राजा ने अपने विश्वस्त को छत्तीसगढ का कार्यभार दिया । दिनकर का दो वर्ष का कार्यकाल अत्यंत ही कठिनाईयों से भरा हुआ था।
  • महीपत राव के काल में युरोपीय यात्री जार्ज फारेस्टर 17 मई 1790 ई० को रायपुर आया था।
  • फारेस्टर ने लिखा कि “रायपुर बडा शहर है और व्यापारी एव धनाढ्य लोग यहा रहते है। यहा एक किला है, किला की दीवाल का निचला हिस्सा पत्थर का है और उपरी भाग मिट्टी का है। इसके पांच दरवाजे है और कई बुर्ज है।” रायपुर के बुढा तालाब के समीप स्थित भव्य इमारत का इतिहास इस वर्णन से स्पष्ट होता है।
  • इनके देखरेख में रतनपुर भी था जहा से सालाना 5 से 6 लाख रुपये की राशि राजस्व मे प्राप्त होता था।
  1. सुबेदार विटठल दिनकर ( 1790-1796 ई० )
  2. सुबेदार केशव गोविंद ( 1797-1808 ई० )

प्रशासनिक व्यवस्था –

बिम्बाजी भोंसले की मृत्यु के पश्चात जो सुबा शासन स्थापित हुआ उससे छ० ग० में लुट का आलम बना । सुबेदार  प्रशासनिक व्यवस्था के सर्वेसर्वा थे। नागपुर से दुरी और आवागमन के अच्छे व तीव्रगामी साधन के न रहने के कारण सुबेदार लगभग सरकार ही थे। सैनिक, असैनिक, राजस्व और न्याय संबंधी मामलों में वह प्रमुख था। राजा और वायसराय का वह विश्वासापात्र होता था।

1788 से 1818 ई० तक 9 सुबेदारों ने शासनकिया। 3 सुबेदार ही मुख्य रहे जिन्होने 26 वर्षों तक शासन किया। यह प्रदेश की ऊंची बोली लगाने वाले को सौंपा जाता था।

  • कमाविसदार – सुबेदार ने अपनी सुविधा व प्रशासनिक सुविधा को ध्यान मे रख्ते हुए छ०ग० की खालसा प्रदेश को परगनों में विभाजित कर दिया था। अपने परगने मे वह सुबेदार का प्रतिनिधि होता था।

अन्य अधिकारियों में फडनवीस (लेखापाल), प्रिथी, बुदकर थे। प्रिथी मुख्यालय फमें सुबेदार के हाथ रहता था। बुदकर कमाविसदार को कृषि व राजस्व संबंधी महत्वपुर्ण सुचनएं देता था। कितनी जमीन पर हल चलाए गए है, फसल कैसी है, किसानों की दशा आदि। एक रुपए प्रति ग्राम के हिसाब से सुबेदार, फडनवीस, कमाविसदार को अपने अपने इलाके के गांवों से प्राप्त होता था।

  • पटेल – यह पद अत्यंत प्राचिन काल से  चला आ रहा है। मराठा काल में यह पद सृजित किया गया। महाराष्ट्रियन ब्राम्हणों को मुख्यत यह पद दिया गया। जिस गांव को वे मुख्यालय बनाते, वहां के गौटिया भी बना दिये जाते थे। शेष गांव के गौटिया उसके अधिन रहते थे। राजस्व की वसूली और कृषि का विस्तार उसका कार्य था। राजस्व वसुल कर प्रति रुपए एक आना के दर से वे अपना कमिशन काट शेष खजाने में जमा करते थे।
  • गौटिया – ग्राम प्रमुख के रुप मे इनकी महत्ता थी। सभी जाति या वर्ण के लोग इस पद पर नियुक्त हो सकते थे। पद, मर्यादा, कर्तव्यों में मरठों ने कोई परिवर्तन नहीं किया। गौटिंया का पद पहले आनुवांशिक नही था, बाद में हो गया। परगने का कमाविसदार गौटिंया को नियुक्ति पत्र देता था।

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CGPSC-2016 – सुबा शासन    4.5 5 Yateendra sahu August 13, 2016 Share प्रथम सुबेदार महीपत राव दिनकर ( 1788-1790 ई०) महीपत राव दिनकर सुबेदार बनने से पुर्व छत्तीसगढ़ से परिचित था। वह एक मंजा हुआ कु...


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